जो मेरी रूह में इक हम नशीं समाई है।
लेगी वो जान खबर उसने अब सुनाई है।
वो आँखें पूछती हैं की मेरी ख़ुशी क्या है,
जो खुद ही इश्क़ से पहले न मुस्कुराई है।
मैं जानता हूँ कि मर जाना भी इबादत है,
ये ज़िंदगी भी किसी शख़्स पे लुटाई है।
ये फ़ैसला था कि अब राहें भी जुदा होंगी,
ये बात आख़िरी मंज़िल पे याद आई है।
है सामने वो मगर बात भी नहीं होती,
ज़बान पर क्यूँ ये ख़ामोशी आज छाई है।
ये क्या हुआ कि वो परदा हटा के भी न मिले,
मेरे ख़याल से महफ़िल सजी सजाई है।
बहुत ही देर से समझा ये राज़ उल्फ़त का
कि उनकी राम कहानी सुनी सुनाई है।
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साभार: अंजानलेगी वो जान खबर उसने अब सुनाई है।
वो आँखें पूछती हैं की मेरी ख़ुशी क्या है,
जो खुद ही इश्क़ से पहले न मुस्कुराई है।
मैं जानता हूँ कि मर जाना भी इबादत है,
ये ज़िंदगी भी किसी शख़्स पे लुटाई है।
ये फ़ैसला था कि अब राहें भी जुदा होंगी,
ये बात आख़िरी मंज़िल पे याद आई है।
है सामने वो मगर बात भी नहीं होती,
ज़बान पर क्यूँ ये ख़ामोशी आज छाई है।
ये क्या हुआ कि वो परदा हटा के भी न मिले,
मेरे ख़याल से महफ़िल सजी सजाई है।
बहुत ही देर से समझा ये राज़ उल्फ़त का
कि उनकी राम कहानी सुनी सुनाई है।
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