जो लिखने लायक हो गए उनकी कलम बंद है,
जो पढ़ने लायक हो गए उनकी जुबान बंद है।
जो दौड़ने लायक हो गए उनकी कदम पस्त है,
जिनका जिम्मा था जागृत करने का औरों को,
आज वो अपने लाइक,कमेंट और सेक्सचैट में व्यस्त हो गए।
इतने लाचार, इतने नालायक वो भी नहीं थे,
कभी जिनके सारे रस्ते बंद थे।
स्वाभिमान कूट कर भरा होगा उनके जहन में शायद आज भी,
लड़े जो जी जान से वो संख्या में चंद थे।
"स्वाभिमान" मरा होगा तो तुम जिंदा "लाश" हो,
अगर सोने का ढंग कर रहे हो तो,
डियर तुम एक नंबर के बदमाश हो।।
जो पढ़ने लायक हो गए उनकी जुबान बंद है।
जो दौड़ने लायक हो गए उनकी कदम पस्त है,
जिनका जिम्मा था जागृत करने का औरों को,
आज वो अपने लाइक,कमेंट और सेक्सचैट में व्यस्त हो गए।
इतने लाचार, इतने नालायक वो भी नहीं थे,
कभी जिनके सारे रस्ते बंद थे।
स्वाभिमान कूट कर भरा होगा उनके जहन में शायद आज भी,
लड़े जो जी जान से वो संख्या में चंद थे।
"स्वाभिमान" मरा होगा तो तुम जिंदा "लाश" हो,
अगर सोने का ढंग कर रहे हो तो,
डियर तुम एक नंबर के बदमाश हो।।