शब्दों के तरंग से हीकविताओ की हर सारंपे जिकर हो उसकी
हर शब्दो शब्दो में फिकर हो उसकी
खो न जाए कहीं उन पन्नो के कोने में भाव उसकी
गुनगुना ना पढे विन राग उसकी
माना दिल की आवाज हे कविता
सब्दो की भाव हे कविता
कवि रोती कभी हस्ती
कभी मन की तरंग के साथ हैं कविता
हर तरंग को चलने दो
ऐसे न रोको उनको भी
सब्दो के संग मचलने दो
कभी विखर्ने तो कभी
इसकी भी थोडा सम्हाल्ने दो
मन ने उमंग लहराते हैं,
कुछ खिल उठते हैं तो
कुछ यूं ही बिखर जाते हैं।
पर बिखर के भी संभालना है
शब्दों को नए रूप में जोड़ना है।