स्त्री व पुरूष
दोनो ही जन्म से
अर्द्धनारीश्वर होते हैं ।।
पुरूषों का स्त्रीत्व
धीरे धीरे कुचला गया
पुरूष रोते नही
कहकर उनके अश्रु
बहने नही दिये गए,
पुरूषों को दर्द नही होता
कह कर बनाया गया
कठोर और संवेदनहीन
बार बार उनका स्त्रीत्व
कुचला गया,
वो रोना चाहते थे
कभी कभी
फूट फूट कर
पर अंततः
उन्हे पुरूष बनना पड़ा ।।
_____________________________________________________
स्त्रियों का पुरूषत्व
पल पल कुचला गया
स्त्रियाँ ये नही करतीं
कहकर दबा दी उनकी
अनगिनत प्रतिभाएं,
स्त्रियाँ वो नही कर सकतीं
कहकर बाँधी गईं
उनकी सीमाएं
बार बार
उनका पुरूषत्व
कुचला गया,
वो हँसना चाहती थीं
कभी कभी
ठठ्ठे मारकर
पर अंततः
उन्हे स्त्री बनना पड़ा ।।

दोनो ही जन्म से
अर्द्धनारीश्वर होते हैं ।।
पुरूषों का स्त्रीत्व
धीरे धीरे कुचला गया
पुरूष रोते नही
कहकर उनके अश्रु
बहने नही दिये गए,
पुरूषों को दर्द नही होता
कह कर बनाया गया
कठोर और संवेदनहीन
बार बार उनका स्त्रीत्व
कुचला गया,
वो रोना चाहते थे
कभी कभी
फूट फूट कर
पर अंततः
उन्हे पुरूष बनना पड़ा ।।
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स्त्रियों का पुरूषत्व
पल पल कुचला गया
स्त्रियाँ ये नही करतीं
कहकर दबा दी उनकी
अनगिनत प्रतिभाएं,
स्त्रियाँ वो नही कर सकतीं
कहकर बाँधी गईं
उनकी सीमाएं
बार बार
उनका पुरूषत्व
कुचला गया,
वो हँसना चाहती थीं
कभी कभी
ठठ्ठे मारकर
पर अंततः
उन्हे स्त्री बनना पड़ा ।।

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