Best Of Urdu Poetry
Mirza Ghalib:-
हैरत हुई तुम्हे मस्जिद में देख कर "ग़ालिब" ऐसा भी किया हुआ के खुदा याद आगया।
Ahmed Faraz:-
कभी आंसू, कभी सजदे, कभी हाथों का उठ जाना, इंसान जब टूट जाता है तो खुदा बहुत याद आता है।
Allama Iqbal :-
क्यू मन्नते मांगता है औरों के दरबार से "इकबाल" वो कौनसा काम है जो होता नहीं तेरे परवर दिगार से
Mirza Ghalib:-
हैरत हुई तुम्हे मस्जिद में देख कर "ग़ालिब" ऐसा भी किया हुआ के खुदा याद आगया।
Ahmed Faraz:-
कभी आंसू, कभी सजदे, कभी हाथों का उठ जाना, इंसान जब टूट जाता है तो खुदा बहुत याद आता है।
Allama Iqbal :-
क्यू मन्नते मांगता है औरों के दरबार से "इकबाल" वो कौनसा काम है जो होता नहीं तेरे परवर दिगार से