लोग परेशान है उन अखबारों से,
छपा है औरतें मर्दों पर जुल्म कर रही है।
वे जरा अतीत के पन्ने तो पलटे तो पता चले,
धर्म और संस्कृति के कफ़न में कितनी ही बेगुनाह
लाशे लिपटी पड़ी है।
कुछ कोख में मारी पड़ी है तो कुछ पति की चिता में
जिंदा जली है।
घर की चारदीवारों में कैद वो घुट कर मरी है
तो कुछ अभी भी बुरखे में।
दहेज की आड़ में किस कदर उनकी बलि चढ़ी है।
तब कितना खुश था ये समाज,
झुंझला उठा जब खुद की लगी पड़ी है।।।
छपा है औरतें मर्दों पर जुल्म कर रही है।
वे जरा अतीत के पन्ने तो पलटे तो पता चले,
धर्म और संस्कृति के कफ़न में कितनी ही बेगुनाह
लाशे लिपटी पड़ी है।
कुछ कोख में मारी पड़ी है तो कुछ पति की चिता में
जिंदा जली है।
घर की चारदीवारों में कैद वो घुट कर मरी है
तो कुछ अभी भी बुरखे में।
दहेज की आड़ में किस कदर उनकी बलि चढ़ी है।
तब कितना खुश था ये समाज,
झुंझला उठा जब खुद की लगी पड़ी है।।।