दर्द बयां करने मै ज़रूर आ गया,
मेरी सुनता नही ये कौन मग़रुर आ गया।
मोहब्बत से दूर भागने कि फ़िराक़ में,
अब मै कुछ ज़्यादा ही दूर आ गया।
वापस जाने को तरस रही हैं निगाहें,
पर वापसी में कहेंगे कि देखो मजबूर आ गया।
शाम ढली तो सोचा छिपते छिपाते निकाल जाऊं,
रात फिर मेरी नज़रों में हुनर-ए-ग़ुरूर आ...