काश मैं "कायनात" के नाजुक हाथ का कंगन होता,
तू मुझे प्यार से, बड़े सम्मान के साथ पहनती,
तेरी मुलायम कलाई पर चढ़ते हुए मुझे तेरी गर्मी महसूस होती,
और उन बे-ताबी भरे पलों में मैं तेरे ख्यालों में खो जाता,
जब तू अपनी सोच में डूबे, मैं तेरी बाहों में लहराता,
तेरे छूंने की खुशबू से मैं महक उठता।
जब...